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एक सनसनीखेज़ खबर

Laptop wala Soofi
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 BREAKING NEWS : खबर है कि एक रईसजादे के बाग से आम तोड़ रहे बच्चे को रईसजादे ने गोली मार दी : 

 

दृश्य : जेठ की अनमनी अलसाई दुपहरी ….दूर कोई ताड़ी के मत्त में चूर ढोल की थाप पे रसिया गा रहा है ….पुरबैय्या की लोच में उसका स्वरालाप इधर उधर बहता जा रहा है ..कभी तीव्र कभी मंद…कभी श्रुति सीमाओं के पार….माँ बरौठे पे बीचे खाट पे अधलेटी हाथ में पंखा लिए ऊँघ रही है….गोलू और मोलू वहां बैठे पहाडा याद कर रहे हैं -पंद्रह के पंद्रह ,पंद्रह दुनी तीस ,तियो पैंतालिस…पास हीं ऊँचे परकोटों के पार सघन वन-कुंज से आम के खट्टे -मीठे बौरों के झुरमुट में छिपी कोयल अपनी कूक से उन्हें  लगातार आमत्रण दे रही है की – हे बाल नवल आओ ,हे चपल चंचल आओ परकोटों के पार इस कानन कुंज में ,आओ दुपहरी के गुमसुम सन्नाटों को तोड़ने में मेरा साथ दो…मोलू जिसके पहाड़े कि लयबद्धता कोयल के आमंत्रण से टूटने लगी है ,पहाडा रटना बंद कर अपने भाई गोलू से कहता है – चल न भाई चल उस परकोटे के पार उस सघन वन कुंज चलते हैं और आम के दरख्तों पे चढ़ कर खट्टे मीठे बौरे तोड़ते हैं ….गोलू- नहीं माँ कहती है कि किसी के बाग में जाकर आम तोडना महा-अपराध है ..मौत कि सजा मिलती है ….मोलू -ये मौत क्या होती है ? गोलू निरुत्तर रहता है ..क्यूंकि उसे इसका जबाब नहीं पता …मोलू गोलू को निरुत्तर देख चहकता हुआ कहता है -तू मुझे उल्लू बना रहा है ..तूझे बैठना है तो बैठ मैं जाता हूँ ..यह कह मोलू दबे पांव वहां से चल पड़ता है परकोटों के पार उस आम के बाग़ की तरफ

 

 

बच्चे भला दीवारों की रस्मे कहाँ मानते हैं

आसमां के परिंदे सा हर सदद लांघते हैं

 

कभी खट्टे मीठे अमौलियों के लिए

कभी रंग बिरंगी तितलियों के लिए

कभी यूं हीं परकोटों के पार का

अनदेखा मंज़र देखने के लिए,बच्चे

दीवारों पे चढ़कर उस ओर झाकते हैं

 

बच्चे भला दीवारों की रस्मे कहाँ मानते हैं

आसमां के परिंदे सा हर सदद लांघते हैं

 

प़र एक रिंदा-ए-बलानोश रहता है उस पार

गुरुरे-ज़र में डूबा ,लिए बारूदी हथियार

और भेद देता है सीना उनका

जो उसके निजाम में खलल डालते हैं

यह बात ये अबोध बच्चे कहाँ जानते हैं 

 

बच्चे भला दीवारों की रस्मे कहाँ मानते हैं

आसमां के परिंदे सा हर सदद लांघते हैं

 

दृश्य : मोलू का मृत शरीर उसके माँ की गोद में निढाल पड़ा है और उसकी माँ अपने दिल के टुकड़े के मृत शरीर को देख छाती पीट पीट कर  प्रलाप कर रही है  :

 

यह कैसे हो सका कि जब

पिछले बसंत की हरितिमायें

अब भी शाख पे ,

झूमते अमराइयों के संग

बसंती अब भी मंज़रों के

यौवानायाम भुना रही

कि दस्तक के कूक

कोकिलों के अभी थमे नहीं ,

भंवरों को झुण्ड को सरसों

अब भी लुभा रही;

फागुनी गीत के

उच्छवासों का कम्पन

अब भी शेष ,

शेष अब भी

उत्सवों के पहनावे का

ताना बाना

कैसे समय से पहले

तरुणायी प़र हावी होती पतझड़

तुम्हारे ज़िन्दगी को

ठूंठ बना कर चली गयी

 

   ***

कल्पनाओं का पंख लगा

तुम्हारा अज्यमितिय उड़ान

ब्योम के विपुलताओं में

छलांगा था

प़र चूक गए तुम

अपने गणना में

जब यथार्थ के पटल प़र

तुम पटके गए

प्रयोसं के चंद फर्लांग मात्र

चलने प़र

 

BREAKING NEWS :खबर है कि एक डाक्टर पैसे के एवज़ में लड़की की भ्रूण-हत्या कर साक्ष्य मिटाने के लिए भ्रूण अपने पालतू कुत्ते को खिला दिया करता था

 

डाक्टर तुम तो एक पराये हो …

निरमोही पुरुषत्व के नुमाए हो

नहीं खलता इतना जब तुम मुझे

अपने कुत्ते का ग्रास बनाते हो ;

मेरे धड़कते वजूद को

एक निशक्त लाश बनाते हो

पर माँ !…माँ तो खुद एक

नारी है ……

नारी होने की व्यथा उसने

खूब गुजारी है

फिर वह कैसे मुझे बोझ समझ

मेरे नारीत्व का उपहास उड़ाती है ?

कैसे मेरे धमनियों में धमक रहे

मेरे रक्त को गटर में बहाती है ?

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