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JJ तुम्हारी बहुत याद आएगी

Laptop wala Soofi
Laptop wala Soofi
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‘कुछ होगा कुछ होगा अगर मैं बोलूँगा, न टूटे तिलस्म सत्ता का मगर मेरे अन्दर का कायर तो टूटेगा ‘  आपने रघुवीर सहाय की कविता तो सुनी होगी …….मेरे पीछे से यह चीर परिचित आवाज आई …मुड़कर देखा तो देखा folly ji थोडा परेशान मुद्रा में चले जा रहे हैं …मैंने कहा- सुनी तो है ….folly जी- तो आप चुप क्यूँ हैं ?  अब मैं भला क्या जबाब देता …..बगले झाँकने लगा …उनसे थोड़े हीं कहता कि अब कौन विद्द्वानो की ज़मात से पंगा ले …..भले जे जे का रवैया अब तक बड़ा निष्पक्ष और न्याय प्रिय रहा हो पर वह अब  एक ऐसे गुलफाम सा हो गया है जिसके बाग में अब खार उगने लगे हैं ,जहाँ सुकूत के दरख्तों पे अब उल्लू बैठने लगे हैं …जब वे सब एक सुर पे खटराग अलापेंगे तो JJ को थक हर कर उनकी सुननी पड़ेगी और मुझे निर्वासन दे दिया जायेगा …हाय फिर मेरे प्यारे दोस्त सरिता जी,दिनेश जी ,अनिल जी ,चन्दन जी ,दीप्ती जी ,प्रदीप कुशवाहा जी ,यमुना जी ,साधना जी ,निशा जी ,yogi जी ,मोहिंदर जी ,महिमा जी ,विक्रमजीत जी ,मधुकर जी ,मीनू जी ,राहुल प्रियदर्शनी  जी ,अनुपम जी,कृष्णा जी ,राजीव कुमार झा जी ,ख्याति जी ,रितेश जी ,रेखा जी, आशीष जी ,ajay dubey  जी,सतीश जी ,सुमित जी ,आनंद प्रवीण जी वगैरह   इन सारे दोस्तों का प्यारा साथ छुट जायेगा ….(हालाँकि इनमे से कुछ दोस्तों  से मेरा वैचारिक मतान्तर रहा है पर किसी तरह का वैमन्यस्ता नहीं )

अरे कहाँ खो गए आप ? फोल्ली जी ने मुझे मेरे तन्द्रा से निकालते हुए पूछा ….जी वो वो ..आप बताइए आप इतने disturbed  क्यूँ लग रहे हैं …आपके तो ब्लॉग का टैग  लाइन है ‘the intent is to disturb you ‘ मैंने फोल्ली जी के जटिल सवाल से बचने के लिए यह सवाल दाग दिया ……

 

folly ji – लैप टॉप वाले सूफी जी अब आप भी diplomat होगये हैं मेरे सवाल का जबाब देने के बजाय आप  मुझपे हीं सवाल दाग दे रहे हैं ..खैर मैं तो हूँ हीं कठघरे में खड़ा लोगों के सवाल का जबाब देने ,उनकी गालियाँ ,उनका प्रतिकार सहने ….आपके सवाल का भी जबाब दे देता हूँ तो सुनिए मह्त्मन हाँ मैंने अपने ब्लॉग का Tag रक्खा है ‘the intent is to disturb you ‘ जानते हैं कि इसके पीछे मेरा आशय क्या है …लम्पटगिरी करना नहीं बल्कि कुछ दोस्तों के मन के ठहरे हुए ताल में प्रगतिवादी और वैज्ञानिक सोंच का कंकड़ फेंक उनके मन में हल चल मचा देना ,अकर्मण्य विचारों के लहरों को फिर से गतिमान कर देना ….मैं जानता हूँ ऐसा करने में मेरे दोस्त परेशां होंगे…..मेरी लीक से हटकर सोंच उन्हें हिला देगी पर अन्तोगत्वा उनका भला हीं होगा …..जानते हैं अगर बीज को हवा में टांग दिया जाये …उनके विरुद्ध कोई प्रतिविरोधी बल कार्य न करे तो बीज से जीवन प्रस्फुटित नहीं होता है ….पर जब इसी बीज को मिटटी की परतों के नीचे दबाया जाता है तो बीज के गर्भ में सोया जीवन लहलहा उठता है …मानव मन भी ऐसा हीं है एक बीज जैसा पर मुझे सपने में भी गुमान नहीं था की अच्छी नियत से की गई मेरी चेष्टा का यह परिणाम होगा …..बीज से उदंडता का पेड़ फूट पड़ेगा और उसके शाखों पे ढेर सारे उल्लू आकर बैठ जायेंगे .

मुझे भीड़ एक अनियंत्रित ,उन्मादी  निकाय सा लगती है …निगाह उठाकर देख लीजिये आस पास भीड़ और उनके करतूतों को ,मेरी बात की पुष्टि हो जाएगी ….भीड़ द्वारा निर्देशित विचारधाराओं में न ठोसपन होता है न स्थायित्व क्यूंकि वह व्यक्तिपरक चरित्र नहीं है …फिर चाहे भीड़ अच्छे उध्श्य का हीं संवहन क्यूँ न कर रही हो ……उन्माद की हवा ख़त्म ,भीड़ की महानता भी ख़त्म हो जाती है ….उदाहरण के लिए अन्ना की भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहीम ….लाखों लोग जुड़े इससे …खूब आवाज बुलंद हुई पर चूँकि इस मुहीम से जुड़े हम आप सब कहीं न कहीं थोडा बहुत बेईमान थे ,हमारा व्यक्तिपरक चरित्र शुद्ध नहीं था ,सब कुछ बुलबुले की भांति ख़त्म हो गया – यह कुछ ऐसा था  –

 

उन्माद के बिखरे हवाओं में एक लय में सब महान हुए
   काले कर्कश कौवे के भी अब सुरीले तान हुए….

 

इसके ठीक उलट ‘A human revolution of a single individual can change the destiny of entire nation’ स्वस्थ और सत्य विचार अकेलेपन में पनपता है …तब पनपता है जब लोग बगैर किसी से प्रीत या वैर रक्खे ,बगैर किसी पूर्वाग्रह के आत्म-मनन  करते हैं ….किसी के लिखे शब्दों का बाह्य अवलोकन नहीं करते बल्कि उसकी गहराई में उतरते हैं ….तब जो विचार पनपता है ,उसमे शुद्धता होती है ,स्थायित्व होता है ..मैं अपने अलहदा सोंच के कारण अकेला हूँ पर इसका मतलब यह नहीं की मेरी हर बातें गलत होती हैं

 

 

ना बन समस्त रागिनी पर एक तान तू तो बन
भेद सके जो हिरदय को वो मर्म गान तू तो बन

सहस्त्र तारों के नीचे किन्तु रजनी स्याह सी है काली
पर एक रवि की आभा से दिवस ने पाया उजियाला
उस विपुल व्योम के तुर्य सा कोई पहचान तू तो बन
प्रशस्त करे जो पुण्यपथ को ऐसा एक महान तो बन
 
ना बन समस्त रागिनी पर एक तान तू तो बन
भेद सके जो हिरदय को वो मर्म गान तू तो बन

एक सत्य सहसा उल्कापिंड सा प्रज्ज्वलित हो उठता है
झूठ के अतुल अराती में सुवाडग्नि सा वो दहकता है
अनेक तिमिर वीथियों में सत्य का एक सोपान तो बन
हो जन विज्ञ मुक्ति मार्ग के ऐसा एक आह्वाहन तो बन

ना बन समस्त रागिनी पर एक तान तू तो बन
भेद सके जो हिरदय को वो मर्म गान तू तो बन
 

 

आपकी भावनाओं की कद्र करता हूँ folly ji  ….बड़ी बेबाकी से सच्ची बात कहते हैं आप पर माने  या न माने आपकी बातों में  थोड़ी तल्खियत,थोडा कडवापन तो होता है ….क्या आप और शिष्टता से और मृदुलता से अपनी बात नहीं कह सकते .…..folly ji – हुंह शिष्टता …..मेरा अपराध क्या है ..यही न कि मैं एक अलग किस्म की सोंच रखता हूँ तो करिए विरोध मेरे विचारधारा की…कुछ लोगों ने किया भी जैसे चन्दन भाई ,दिनेश भाई पर शालीनता के साथ …उन्होंने मुझपर कोई व्यग्तिगत टिपण्णी नहीं की …मुझसे लड़े खूब लड़े पर मेरे दोस्त बने रहे…. दरोगा जी ,शशि जी जैसा व्यक्तिगत रंज नहीं रक्खा मुझसे ….शशि जी bloger ऑफ़ the  वीक बन गए ….लोग उनकी प्रशंशा कर रहे थे और वह साहब प्रतिउत्तर में धन्यवाद ज्ञापित करने में कम लोगों को मेरे खिलाफ भड़काने में जयादा लगे थे ….. और दरोगा जी ,दरोगा जी बेचारे तो खुद की भी इज्जत नहीं करते (खुद को कुत्ता कहते हैं ) वे बेचारे दूसरों की इज्ज़त क्या करेंगे …..कुछ लोगों ने तो  मेरे भावनाओं को ठेस पहुचने वाले ऐसे अपशब्द कहे की क्या कहूँ ….  पलट कर देखिये पन्ने ..मेरी प्रतिक्रिया भी देखिये …क्या मैंने किसी पे व्यक्तिगत टिपण्णी किया है ..मैंने JJ के लोकतान्त्रिक मंच पे अपना सोंच  परोसा है पर उन्होंने ….देखिये पन्ने पलट के …अरे पन्ने पलटने की भी आवश्यकता नहीं आपको ..मैं सुनाता हूँ उनकी  विष रंजित कुछ  टिपण्णीयां :

 

“लेकिन ये हरामी यहाँ पहुंचा कैसे बिटिया ? उसकी हिम्मत कैसे हुई तुमसे जबान लड़ाने की ? भला हो चातक जी का, जिन्होंने मुझे यहाँ तक पहुंचाया और यह सब जानकारी हुई. अब देखता हूँ इस मादरजात को. तुम फ़िक़र मत करो बेटी, अब चाचा आ गया है. कहाँ है बे हेमा के गाल … ?”

 “इस विकृत वुद्धि व्यक्ति ने मुझसे भी पंगा लेना चाहा था पर मेने देखा की इससे बहस करना अपने अमूल्य समय को नष्ट करना है. इसलिए मेने इसे जवाव देना बंद कर दिया. मंच पर मौजूद बाकी लोग भी इससे पीड़ित है. कही ऐसा न हो की कुछ दिनों बाद ये खुद को ही भगवान कहने लगे.”

“वो दुर्जन आज उसकी शख्शियत में दोष ढूंढ़ते है ,”

“माँ पर बहस मेरी नजर में मूर्खों का काम ,”

“रावन को अपना पाप भी पुण्य लगता था ,”……

“लोगों की सोच अब असुरों से भी ऊपर की होने लगी है तो क्या करेंगे ,..ऊर्जा जाया करने का कोई लाभ नहीं ,”

“वो दुर्जन आज उसकी शख्शियत में दोस dundhte है ,”

“जो माँ को नालायक कहे. मेरे हिसाब से वो मानसिक रोगी ही हो सकता.”

.

 

साधना -मैं साधना नहीं ,कलम वाली बाई हूँ सूफी जी ….चौंकिए मत मेरा यह नामकरण JJ  के कुछ अतिविशिष्ट विद्वानों ने किया है …..बकौल उनके मैं JJ के मंच पे ,वहां वहां झाड़ू लगाती हूँ जहाँ फोल्ली जी अपने विचारों का कचरा फैलाते  है …

फोल्ली जी चुप रहे …. कलम वाली बाई ने फोल्ली जी की तरफ देखा और फिर मुझसे मुखातिब होकर कहने लगी- लैप टॉप वाले सूफी जी …इनके चक्कर में मुझपे तोहमतें लग रही हैं ….अपराध क्या था मेरा इनके लेख के प्रति अपना प्रीत ज़ाहिर कर देना …..विद्वानों ने वो इलज़ाम लगाये हैं मुझपे कि मेरे माँ बाप अगर उन टिपण्णीयों  को देख लेंगे तो या तो वे उनपे  मानहानि का मुकदमा ठोक देंगे या मुझपे JJ के मच पे आने  पर सदा के लिए प्रतिबन्ध लगा देंगे ..अब बताइए इस दुनिया में ऐसी कितनी जगह है जहाँ आपके अहंकार को एक आलंबन मिलता हो ..आपको पता नहीं सूफी  जब लोग आपके लेख पर सकरात्मक प्रतिक्रिया करते हैं तो क्या आनंद मिलता है ….बौधिक क्षुधा की कितनी तृप्ति होती है …. एक ऐसी जगह जहाँ खुजली हो रही  हो और हाथ न पहुँच पा रहा हो और ऐसे में कोई आकर वहां खुजली कर दे तो कैसा  सुख मिलता है …समझ लीजिये वैसा सुख मिलता है अहम् की तुष्टि में ….और ये महाशय मुझसे यह सुख छिनने पे अमादा है …....

 

फोल्ली जी – मैं तुम्हारा सुख छिन रहा हूँ …. मैं विचारों का कचरा फैला रहा हूँ …हुंह अंधे कांच और हीरे में भेद क्या जाने …..

 

साधना -नहीं जानते वो तो फिर आप हीं क्यूँ नहीं सुधर जाते …क्या जरूरत है उनके लिए विचारों के मोती खर्चने की ? ये उम्मीद के नाव के सहारे झूठ के समंदर को पार करने की कोशिश कर रहे हैं ….अरे माना साहब 

 

माना उम्मीद के नाव
और जोश की मस्तूल
के सहारे बहुत दूर तक
जाया जा सकता है
पर समंदर की अपरिमितिता
भी तो देखिये साहब …..
अतुल जल-राशी
अपने गर्भ में
समा लेने को उद्द्वेलित
और इस समंदर के
सामंती पहरेदार –
वो पैने दांतों वाले शार्क
मांस के चीथड़े करने को आतुर …
भला इस समंदर को कैसे
पार किया जा सकता है ?

 

इस कविता के बाद भी साधना जी का भावावेग नहीं थमा …..’क्या ज़रुरत है इनको उम्रदराज लोगों से तल्ख़ बातें कहने की....

 

folly ji – नहीं कहूँगा तल्ख़ बातें उनसे  पर  पता भी तो चले कि वो उम्र-दराज़ हैं …बातों से तो वे अबोध बालक लगते हैं …

 

साधना – उनके मूंह में हाथ डालकर उनके दन्त गिनिये ….उम्र का पता चल जायेगा .….

 

मैंने टोका -पर ऐसे तो जानवरों के उम्र का पता लगाया जाता है …..सुनकर दोनों पेशोपकश में पड़ गए ….मैंने ही दोनों का मौन तोडा यह कहते हुए कि ‘folly ji  साधन जी एक बात तो सही कह रही हैं कि आपके चक्कर में आपके दोस्त मुसीबत में पड़ रहे हैं …मुझे तो डर सताने लगा है कि जब विद्वानों ने  आपके लेख के चक्कर पे हमारे पीछे एक दरोगा बिठा दिया है ….(ये अलग बात है कि वो दरोगा कम पनवाड़ी ज्यादा लगते हैं )आपने लेखन का क्रम बदस्तूर जारी रक्खा तो कहीं ये CBI न पीछे लगवा  दें ….. फिर तो इस मरदूद लेखन के चक्कर में हमारे कई काले राज फाश हो जायेंगे ……

 

साधना – और इनसे ये भी कहिये इनके बेपेंदी के लोटे कि तरह जो इनके दोस्त हैं जिनपे ये बड़ा गरूर करते हैं ..इनके नहीं हैं ….ये इनके ब्लॉग पे  इनकी तारीफ करके जाते हैं और फिर इनके विरोधियों  के ब्लॉग में पहुँच उनके सुर से सुर मिला इनकी भर्त्सना करने लगते हैं …वो भी सस्ते किस्म का …..

 

फोल्ली जी – एक भूखे कुत्ते को रोटी दिखाकर अगर आप पुचकारेंगे तो वो शायद दुम न हिलाए ….पर हम आप लेखक ,हमारी बौधिक क्षुधा इतनी उत्कट होती है कि कोई ज़रा सा हमारी तारीफ क्या कर दे ,हम दुम हिलाने  लगते हैं …यह लेखक का नैसर्गिक स्वभाव है ..इसमें उन बेचारों का कोई दोष नहीं …दोष मेरा है कि मुझे तारीफ  नहीं आती …और अगर चाटुकारिता आती भी तो मैं ऐसा नहीं करता ..क्यूंकि मुझे १० चाटुकार दोस्तों से ज्यादा प्रिय एक सच्चे (अनिल जी जैसे दोस्तों  ) का साथ है ….

 

चलिए  माना ऐसा हीं सही पर इस भीड़ में सच्चे दोस्तों की पहचान कैसे करेंगे ..उनका कोई symtom ?

 

Folly JI – है उनका भी और पढ़े लिखे मूर्खों का भी symptom  है  ….देखिये जो मेरे आदरणीय बुद्धिमान दोस्त हैं ,वे इस लेख को पढने के बाद बेसाख्ता हो हसेंगे और जो पढ़े लिखे  मुर्ख हैं ,वे यह लेख पढने के बाद खिसिया कर अपना बाल नोचेंगे ….इस कदर मिर्ची लगेगी उन्हें कि वे झटपट कलम लेकर तैयार  हो जायेंगे बकवाद करने .

 

साधना -यही उलुल जुलूल बात न केवल  इन्हें लोगों के आँखों का कांटा बनाती  है,बल्कि इनके दोस्तों को भी मुसीबत  में डालती है … मेरा सुख तो छीन लिया इन्होने ….लिखना पसंद है मुझे पर दुशासन  के बीच अब अपना चीर हरण कराने यह द्रौपदी तो जाएगी नहीं ….सो मेरा तो आखिरी प्रणाम इस मंच को …अब ये सोंच लें की अब इन्हें क्या करना है ….चलती हूँ …यह कह साधना होठों पे फींकी मुस्कान लादे मुझसे विदा ले चल पड़ी .साधना जी जब जा रही थी तो मेरे अन्दर कुछ इस तरह के ख्याल उमड़ रहे थे

 

पैबश्त होता दर्द
जब सालता है
दिल को मद्ध्यम मद्ध्यम
अश्कों का गुरेज़ नहीं
बहता लहू
बस खलता है;
तेरे हंसी की सिलवटों के
कई अक्षर गूढ़ ,
कहीं कोई दर्द छिपा है
बस खलता है

फोल्ली जी कुछ देर चुप रहे ,कुछ सोंचते रहे ,सोंचते रहे और बरबस बरस पड़े ….’हाँ चली जाओ तुम ..सब छोड़ दो मुझे अकेला ….आप भी जाइये लैप टॉप वाले सूफी ….

और जब मैंने यह कह दिया -उफ़ ‘पागल मन बके दनादन’ मेरा टैग लाइन है और पागलों के तरह  आप बके जा रहे हैं ..इतना क्रोध अच्छा नहीं होता Folly  ji 
 

 

तो Folly  जी गुस्से से चीखने लगे -हाँ मैं पागल हूँ ,क्रोधी हूँ ….

 

ओ मेरे क्रोध
विषधर भुजंग सा फुफकार लो तुम
लील लो मुझे
मेरे समस्त आकांक्षाओं की यथेष्टि को
डकार लो तुम
अब तक मेरी आत्मा ने
मेरे शरीर के बोझ को इसी भ्रम में ढ़ोया है 
ढूंढ लेगा वह नेक मक्सद
ज़िन्दगी के भूल भुलैय्या  में जो उसने खोया है
अधूरे आकांक्षाओं का ज्वर
और ना-उम्मीदी का संताप
तिस पर हिरदय के अंधियारे में
कुंडली मार कर बैठा मेरे क्रोध का सांप
की अब बहुत हो चूका मुझे मेरे
ग्लानी-शिक्त वजूद से
उबार लो तुम
लील लो मुझे
मेरे समस्त आकांक्षाओं की यथेष्टि को
डकार लो तुम

 

यह बडबडाते हुए फोल्ली जी चले गए शायद हमेशा के लिए ..मेरे मन में विप्लव मचा कर ….. जाते जाते फोल्ली जी ने मेरे ज़ज्बाती रगों को कुछ यूं छेड़ा कि एक खला सी  बन गयी सीने में ….कुछ दिन पहले फोल्ली जी से जब मैंने पूछा था  कि फोल्ली जी बड़ी इच्छा है आपको जानने की ….कुछ बताइए न अपने बारे में ..तो फोल्ली जी ने कहा था –

 

‘क्या बताऊं अपने बारे में …ख्वाब मेरी कायनात है और कलम वो पंख जो मुझे ख्वाबों की दुनियां में परवाज़ी करने का माद्दा देती है…अज़ीबोगरीब किस्म के ख्याल आते रहते हैं मेरे ज़ेहन में कि अगर जो मैं रंगरेज होता तो सारी दुनिया को रंगे-हकीकत से रंग देता….अगर मैं आफ़ताब होता तो हर ज़ुल्मतपस्त ज़िंदगी में उम्मीद का नूर भर देता..बडा अलहदा हूं मैं …कुछ,कुछ पागल सा.’

 

पर फोल्ली जी आप ऐसी बहकी बहकी बातें क्यूँ करते हैं जिससे इतना बवेला खड़ा हो जाता है
इस पर फोल्ली जी का जबाब था –

 

बहुत हुआ लकीर पे लकीर खींचना,
हवाओं के रुख में तुनीर खींचना;
चलो अब कुछ हंटकर,कुछ नया करते हैं
नये अंदाज़ में हम खुद को बयां करते हैं;

चलो चलते हैं मंज़िल से रस्तों की ओर,
और दरिया से पहाडों के तरफ़ चलते हैं;
चलो छननी में चुनते हैं कतरे ओस के,
और ओस के बुलबुलों में धूप भरते हैं;

बहुत हुआ लकीर पे लकीर खींचना,
हवाओं के रुख में तुनीर खींचना;
चलो अब कुछ हंटकर,कुछ नया करते हैं
नये अंदाज़ में हम खुद को बयां करते हैं;

 

यह कविता बार बार  मेरे मन- मस्तिष्क पे गूंज रही थी ….  फोल्ली जी आप सचमुच पागल हैं पर मेरी उस कविता के अंदाज वाले पागल जो मैंने पहले कभी लिखी थी …और मेरी आपके प्रति यह धारणा इतनी मजबूत हो गई है कि मैं एक बार फिर अपने उन धारणाओं को समाहित किये अपनी उस कविता को यहाँ उद्धृत कर रहा हूँ ..क्या पता इसे पढ़कर  कोई मेरी बात समझ जाये  –

 

एक पागल जाने किस अज़ब से
आलम में रहता है
खुदा को अदना कहता है और
खुद को खुदा कहता है

 

वो पागल है कि चांद को
महबूबा नहीं कहता है
वो पागल है कि भीड की
भाषा से जुदा रहता है
दिन को दिन कहता है
रात को रात कहता है
देखिये पागल को, कैसी
बहकी बात कहता है

 

एक पागल जाने किस अज़ब से
आलम में रहता है
खुदा को अदना कहता है और
खुद को खुदा कहता है

 

दुनियां आती है जब तहज़ीबों का
चोला पहनाने
फ़ेंक के काबा-ए-तकल्लुफ़ वो
नंग रहता है
नफ़ासत की तलवारों से कटते
सिर देख के,
ज़हिल उज्जड वो बडा
दंग रहता है

 

सिर गिनता है वो मकतूलों के,
कातिलों के खंज़र गिनता है
देखिये पागल वो दुनियां के
कैसे मंज़र बिनता है

 

एक पागल जाने किस अज़ब से
आलम में रहता है
खुदा को अदना कहता है और
खुद को खुदा कहता है

 

वो पागल है कि उसकी ज़ुबां में
तल्खियत है सच्चाई की ,
तंज़ बहुत है;
वो अहमक है जो नहीं जानता कि
इस दुनियां में सच्चों से लोगों को
रंज़ बहुत है;

 

झूठ की लानत-मलामत करता है
वो सच की खुशामद करता है,
देखिये कैसा पागल है वो कि
न अदा-ए-बनावट करता है

 

एक पागल जाने किस अज़ब से
आलम में रहता है
खुदा को अदना कहता है और
खुद को खुदा कहता है

सोंचा था कि JJ मंच के सभी विद्वानों से कहूँगा –

 

संकल्प कृत हुंकार कर सिंह सा दहाड़ कर
संग चले की हम चलें दुश्वृत को पछाड़ कर
उत्तंग उन्नत उत्थान पर,पथ उस महान पर
संग चले की हम चलें एक नेक अभियान पर

कर्तव्य का बोध हमें दायित्व का संज्ञान हमें
नैनों के सुभग सपनो को सत्य से हम जड़ें
न हम टरे न हम डरें अन्य अनख अनंत से
रक्षार्थ हमारे हैं खड़े समस्त बुद्ध दिगंत से

विपुल व्योम के तुर्य सा, विकर्ण दाह के पुंज सा
समस्त धरा समस्त गगन, तमो तिमिर को हम हरें
संग चले की हम चलें ,पथ उस महान पर
संग चले की हम चलें एक नेक अभियान पर

 

पर राहिला बनने से पहले टूट गया …चंद लोगों कि बेवकूफियों कि वज़ह से ….फोल्ली जी और कलम वाली बाई चले गए शायद हमेशा के लिए  ….आप लोगों की दुआ से मेरा एक फिल्म प्रोजेक्ट भी जल्दी शुरू हो रहा  है ..व्यस्तता के आलम में अब कभी कभार हीं आ पाउँगा , अपने दोस्तों कि खैर खबर लेने ….पर जाते जाते एक बात कहना चाहूँगा आप से वही बात जो सरिता जी ने कही  था कि हम सब की पहरेदारी तो पहरेदारों  ने खूब की पर उन पहरेदारों  की पहरेदारी कौन करेगा ???? कौन ?
चलता हूँ दोस्तों …मैं तो ठहरा मन मलंग सूफी कुछ कुछ दरिया सा …नाम भी है पवन ….बहता रहना मेरा काम  ….यहाँ मिला रास्ता तो ठीक नहीं तो किसी और सिम्त सही

 

हवाओं को किसी के मरज़ी का अलम नहीं होता,
दरिया किसी रुख का पाबन्द नहीं होता;
मैं भी उस बहते बयार,उस मलंग दरिया सा हूं,
जिसे राहिला छुटने का कोई गम नहीं होता
 

 

और फिर मील का  पत्थर भी तो आवाज दे रहा है मुझे –

पिछले मुसाफ़त की धूल पांव से हटी नहीं कि
 मील का पत्थर फ़िर से आवाज़ देने लगा

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