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एक पगले का साक्षात्कार

Laptop wala Soofi
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                     एक पगले का साक्षात्कार  

आज तडके सवेरे जब मैं ख्यालों के बागीचे(जागरण जंक्शन ) में घुमने गया था तो वहां का मंज़र देख मैं हैरान रह गया …..विचारों के रंग-बिरंगे फूलों के बीच एक बड़ा ही बदरंग सा फूल भी था वहां ….’मेरे विमला मौसी का परिवार ,छोटू को आता बुखार’ जैसे बेतरीब शब्दों की कुछ बदशक्ल सी पखुरियां थीं उस फूल में  …..और लोग हस्बे आदत उस फूल के स्तुति गान में लगे थे ,इस बात से बे-इल्म कि वह कविता दरअसल साहित्य की माखौल थी …..लेखक का नाम पढ़ते हीं मेरी पिल्ली चमक पड़ी ..ये तो अपने संदीप जी उर्फ़ wise man थे ….हमारे जंक्शन के इस होनहार लेखक ने ये क्या हाहाकार मचाया हुआ था ….wise man खामख्वाह का फितूर तो करते नहीं …अब इस अजीबोगरीब हरकत के पीछे क्या रहस्य है …मेरे कौतुहुलता ने कुचालें मारी और मैंने जंक्शन के कुछ और लेखकों का पन्ना पलट डाला …देखा कि हर जगह wise man की यह अजीबोगरीब सी कविता अपने खिसयानी दांत निपोड़े मुझे चिढ़ा रही थी …. …..ऐसे दोयम दर्जे की कविता उन्होंने क्यूँ लिखी ,मन में यह उथल-पुथल लिए मैं आ पहुंचा चाय की उस दूकान पे जिसका उपनाम है -‘Defrurstration  Point ‘ ….जल्दी से नाम के सार-गर्भिता की चर्चा करते हुए बताना चाहूँगा कि इसका ऐसा नाम इसलिए है क्यूंकि यहाँ तमाम वो स्वयंभू लेखक ,एक्टर ,डाइरेक्टर वगैरह आते हैं जिनकी खुद की परिभाषवली को छोड़कर उनके लिए लेखक ,एक्टर ,डाइरेक्टर जैसे शब्द कहीं और दर्ज नहीं हैं ….मुद्दे पे आया जाए ….चाय की दूकान पे मैंने देखा कि जंक्शन के वाल पे चस्पा हुआ  wise man के passport photo  जैसा एक आदमी बेफिक्री के आलम में बैठा मजे से चाय सुड़क रहा था  ….दीदें फाड़ कर जरा और गौर से देखा तो अहसास हुआ कि यह wise man के passport photo  जैसा आदमी नहीं बल्कि खुद wise man  हीं था..सलाम-आदाब और एक दुसरे के तार्रुफ़ की तकल्लुफ के बाद मैंने एक लम्हा भी नहीं गंवाया उनसे वो सारे सवाल पूछने में जो जुलाब की तरह मेरे मन के उदर में हडकंप मचा रहा था …..मेरे लिए  वह एक किस्म का साक्षात्कार हीं था …एक ऐसे आदमी का साक्षात्कार जिसके पागलपना का मैं बहुत बड़ा मुरीद हूँ….दोस्तों पेश है उस पागल के साक्षात्कार का लम्हां लम्हां बयां :

 

पवन श्रीवास्तव-wise man यह आपन क्या कांड कर दिया है ? एक दोयम दर्जे की कविता को न केवल आपने अपने ब्लाग में पोस्ट किया है बल्कि कई लेखकों के वाल पे भी आपने इसे …

 

wise man   (बीच में टोकते हुए)-बहुत सोंच समझकर मैंने ऐसा किया है ….क्या होगा इससे …ज्यादा से ज्यादा मैं बदनाम हो जाऊंगा यही न ? मुझपर एक उच्श्रीन्खल कवि होने का आरोप लगेगा यही न ? तो सुन लीजिये पवन साहब यह ऐसा देश है जहाँ बदनामी की सीढियां चढ़ कर हीं सफलता मिलती है .

 

पवन- पर साहित्यिक मर्यादा की तो आपन लाज रक्खी होती …कुछ नहीं तो अपने हिंदी प्रेम के खातिर इस तरह की उपस्तरिय रचनाएँ लिखने से बचते .

 

wise man -अजी साहब यह थोथी दलील मत दीजिये …क्या होती है साहित्यिक मर्यादा ? आप जंक्शन के प्रथम पृष्ठ पे दृष्टिपात कीजिये …आपको वहां एक से बढ़कर एक ऐसे  कूड़ लेखक मिल जायेंगे जिनकी बेहूदी कृतियाँ जंक्शन के प्रथम पृष्ठ की शोभा बढ़ा रही हैं …जिनपर लोग मुक्त हिर्दय से सराहनाएं बरसा रहे हैं और आपको इसी जंक्शन में कई उत्कृष्ट रचनाएँ भी मिल जाएँगी जो नीरवता के अनमने वातावरण में एकांतवास कर रही हैं ….कोई सराहने वाला नहीं उनको …कल रात जब मुझसे यह सब बर्दाश्त न हुआ तो मैंने जानबूझकर एक बेहूदी सी कविता रचकर वाल पे डाल दिया ….और मैं आश्वस्त था कि इस कविता को लोग खूब सराहेंगे ….क्यूंकि इसमें बेहूदी तुकबंदी है ,गहरे विचार नहीं हैं ….कल मैं खुजली वाले कुत्ते पे अपने पडोसी के ५ साल के बच्चे को कहूँगा कुछ तुकबंदी करे और उसे भी वाल पे डालूँगा …आप  देखिएगा उसे  कई अच्छे रचनाकारों के अच्छी रचनाओं से ज्यादा सराहना मिलेगी . ..भारत में किसी तरह कौतुहुलता पैदा कर दीजिये बस ..आप हिट हैं ….यहाँ अगर सड़क पे थूक फेंक कर भी कोई गौर से अपने हीं थूक को देखने लगता है तो लोगों कि भीड़ लग जाती है …कोई कहता है -चांदी का सिक्का है क्या ?…कोई कहता है स्वाति नक्षत्र कि बूंदे है क्या ?

 

‘आपकी कविता ने मेरे दिल को छूआ है‘….कोई उनसे कहे की कम से कम समाचारों को तो वो अपने ऐसे कॉमेंट्स से बख्श दें ….उफ्फ ये स्वार्थ लोलुपता ,उफ्फ ये चाटुकारिता ,उफ्फ पाठकों की ये बेदानिश्गी .

 

उस wiseman ने मेरी दुखती रग दबा दी थी ….मैंने आगश्ता आँखों से उसे एक नज़र देखा और चुपचाप लौट पड़ा अपने घर की तरफ अपनी लिखी एक पुरानी कविता को याद करते –

 एक हत्यारा कवि अपने

साहित्यिक बोझ के साथ

फांसी  पर  झूल गया

और हिंदी के कई

अनगिनत अनकहे शब्द

निकलते गए

कसते पाश के साथ 

विरल होते उसके कंठ से ….

 

वो शब्द जो अनकहे थे

जिसे कहना चाहा था

कई बार उसने 

और कई बार तो

चाहा था बेचना

दो सूखे रोटियों के मोल पर ,

पर जिसे दो जोड़े 

कान न मिल सके

दाम कैसे मिलते …

वे शब्द जो कई बार

प्रयासरत रहे 

हिंदी के चीर-परिचित

अहिन्दी सम्मेलनों में

कि अब उत्थान होगा

अब उत्थान होगा …

पर इन संकल्पों के कम्पन

मशीनी माइकों के

क्षीण होते हीं

जाने कहाँ विलुप्त हो गए ..

और अगली बार

उपेक्षाओं की अगली कड़ी

उस चाय की दूकान पे

जब उसकी बौद्धिक क्षुधा

सम्मान तलाशने लगी…  

वह जो अब तक

धैर्य न खोया था

भूख के विकटताओं में भी, …

उस चाय कि दुकान पे 

हिंदी कि उपेक्षाओं ने

उसे हत्यारा बना दिया

 

पोस्ट स्क्रिप्ट- लौट कर देखूंगा कि मजाक मज़ाक में जो wiseman ne अपने wall पे  विमला मौसी वाली तुकबंदी की है उसे कितने प्रशंसक मिलते हैं …क्या पाठकों की ज़मात में कोई इतना दानिशमंद मिल भी पायेगा जो यह समझ पाए की वह कविता नहीं है एक मज़ाक है.

Pawan Srivastava    (Lap Top Wala Soofi)

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