Laptop wala Soofi
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ओ प्रिया मेरे भावनाओं का आलम्बन
तो बस क्षीतीज जैसा,
पलकों में समाता अपहुंच
आभास सा,
करूं अवतरित तो कैसे
प्रयास पन्नों पर,
सीमाएं बांधती है कि ये मेरे
असीमित,अपरिमित अहसासों का;
उत्कल होते शब्दों के
चरितार्थ होते संप्रेष्णा,
हों सुन्दर शक नहीं,
पर महदूद उसमें मोहब्बत मेरी
और तेरे सौन्दर्य की अभिव्यंजना
ये संभव नहीं;
ये संभव नहीं की पंक्तियों के पडाव पे
जब ठहर जायें शब्द
तो मैं भी रूकुं
और कुछ न बोलूं
तुम्हारे मुग्धीकरण में अभीभूत होकर….
कि ये क्रम तो जैसे
आकाश के पार तक कहीं
अपलक,अविराम शुन्य को भेदती,
मेरे दिल से उद्भुत होती दुआएं,
वो प्यार,वो शुभकामनाएं-
चार शब्दों में बांधे नहीं जा सकते
क्युंकि ब्योम के विपुलताओं से
भी ज्यादा विस्तरित मेरा प्यार
ओ प्रिया तुम्हारे लिये,
हां बस तुम्हारे लिये.
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