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तहज़ीब की पुंगी बजाती बालाएं उर्फ़ बलाएं

Laptop wala Soofi
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तहज़ीब की पुंगी बजाती बालाएं उर्फ़ बलाएं 

‘ये लिखिकाएं हैं या WWF की पहलवान ‘}

 

इस ब्लाग में पदार्पण  के चंद घंटों के अन्दर हीं मुझे ऐसे ऐसे वाकयात देखने को मिल रहे हैं कि विस्मय से मेरी आंखें फ़टी जा रही हैंदोस्तों मेरे मित्र बन चुके संदीप जी ने मुझे उन तीन अफ़लातूनी बालाओं का भेजा हुआ पर्सनल मेल भेजा जिसे पढकर मैं हैरान रह गया…..हैरानी तो तब दोगूनी हो गई जब इन्ही मे से एक मोहतरमा का ऐसा हीं एक विष-रंजित पर्सनल मेल मुझे भी आ गया ….एक हाकीम अपने महकूम से भी उस तरीके से बात नहीं करता जैसे उन्होने किया है …..दुनिया को दिखाने के लिये एक तरफ़ ये बालाएं (बलांए कहूं तो शायद ज्यादा उचित होगा) हाय अदब,हाय अदब की पुंगी बजा रही हैं पर दूसरी तरफ़ देखिये चोरी छिपे किस तरह का मेल भेज रही हैं….संदीप जी तो इस कदर आहत हुए कि उन्होने मन्सूबा मना लिया था  फ़िर कभी इस फ़ोरम में ना लिखने का वो तो भला हो कुछ भले मानसों का जो सतत आकर उनका हौसला आफ़ज़ाई कर रहे हैं वरना तो हम इस साहसी लेखक से हाथ धो बैठते …..क्या औचित्य है उन लडकियों का ऐसे चोरी छिपे अभद्रता भरा मेल भेजने का (वे इतना डरे हुए क्युं है ? क्या चोर है उनके मन मे जो आप पाठकों के सामने उन्हे अपनी बात रखने में डर लगता है ?) ….और क्या गलत है मेरे या संदीप जी सरीखे लेखकों द्वारा पब्लिक फ़ोरम में पुर्ण पार्दर्शिता दिखाते हुए अपना मंतव्य रखने में ? पब्लिक फ़ोरम है हीं इस निमित्त ….और यह बात सभी पाठक भी जानते हैं तभी तो अभी तक मुझे एक भी ऐसा शख्श नहीं मिला (उन बलाओं को छोडकर )जिन्होने संदीप की भर्त्सना की हो उनसे कहा हो कि तुम छिछोरे हो,घटिया हो (हां मतान्तर कईयों ने दिखाया है बुद्धीजीवियों का एक स्वस्थ सुभग मतान्तर ) ….दोस्तों आपकी अदालत में अपना वो कोमेंट प्रस्तूत कर रहा हूं जिसे मैं ने उन बालाओं के पोस्ट पे डाला था और जिससे विचलित होकर गुपचुप तरीके से उन्होने ढेरों खरी खोटी सुनाते हुए मुझे पर्सनल मेल भेजा देखिये और खुद निर्णय लिजिये की उन लडकिय़ों का क्रित  कितना न्यायोचित है :

 

pawansrivastava के द्वारा

March 31, 2012

रश्मी जी और तमन्ना जी,

चुंकि आप तहज़ीब की ज़बर्दस्त तलबगार हैं ,आदाब से भी ज़यादा तहज़ीबदार लफ़्ज़ अगर कोई है तो वो अर्ज़ है आपको.आपने जिस संदीप जी को घटिया और छिछोरा कहा है,वैसी बेबाकी और पोशिदगी अगर सब अपने दिल मे ले आयें तो यकीन मानिये इस जहां का काया-कल्प हो जाए….काश आपके दनिश्गी में वो पैनापन होता,आपके जज़्बातों में वो बारीकी होती तो आप संदीप जी के लिखे शब्दों का मतलब समझ पातीं….आपको जो बेलौस,बेतरीब,बेअदबी से भरे उनके अल्फ़ाज़ दिख रहे हैं,उनके दबीज़ सतहों को तोडकर तो देखिये,अदर शफ़कत का समन्दर दिखेगा आपको…संदीप जी ने कोई बेअदबी नहीं की है ….हां गलती उन्होने ज़रूर की है,आपके अहम को ठेस पहूंचाने की ….वही हिमाकत मैं भी कर रहा हूं….मुझपे भी ’छिछोरा’ या ’घटिया’ जैसा कोई विशेषण नवाज़ दिजियेगा ….आपके लिये दो कवितायें भेज रहा हूं,हो सके तो कोशिश किजियेगा उन्हें समझने की….आपका शुभेच्छू -पवन श्रीवस्तव.

1)
एक पागल जाने किस अज़ब से
आलम में रहता है
खुदा को अदना कहता है और
खुद को खुदा कहता है

वो पागल है कि चांद को
महबूबा नहीं कहता है
वो पागल है कि भीड की
भाषा से जुदा रहता है
दिन को दिन कहता है
रात को रात कहता है
देखिये पागल को कैसी
बहकी बात कहता है

एक पागल जाने किस अज़ब से
आलम में रहता है
खुदा को अदना कहता है और
खुद को खुदा कहता है

दुनियां आती है जब तहज़ीबों का
चोला पहनाने
फ़ेंक के काबा-ए-तकल्लुफ़ वो
नंग रहता है
नफ़ासत की तलवारों से कटते
सिर देख के,
ज़ाहिल उज्जड वो बडा
दंग रहता है

सिर गिनता है वो मकतूलों के,
कातिलों के खंज़र गिनता है
देखिये पागल वो दुनियां के
कैसे मंज़र बिनता है

एक पागल जाने किस अज़ब से
आलम में रहता है
खुदा को अदना कहता है और
खुद को खुदा कहता है

वो पागल है कि उसकी ज़ुबां में
तल्खियत है सच्चाई की ,
तंज़ बहुत है;
वो अहमक है जो नहीं जानता कि
इस दुनियां में सच्चों से लोगों को
रंज़ बहुत है;

झूठ की लानत-मलामत करता है
वो सच की खुशामद करता है,
देखिये कैसा पागल है वो कि
न अदा-ए-बनावट करता है

एक पागल जाने किस अज़ब से
आलम में रहता है
खुदा को अदना कहता है और
खुद को खुदा कहता है

2)

चलो पाबंदियों के कैंचुल उतार
थोडा हल्के हो लें
और पुरकैफ़ हवाओं में
हम आज़ाद डोलें
उडें मरज़ी के आसमान में
हम इधर-उधर
चलो बेफ़िक्री के आलम में
थोडा खो लें;

इस अदब और तहज़ीब की
दुनियां में है हीं क्या,
झूठी मुस्कराहट,नकली सलाम
और अनमनी दुआ;
परम्पराओं के परकोटे हैं,
मज़हब की सददें हैं,
बंदिशें हैं,बेडियां हैं और
मुल्कों की सरहदें हैं;

चलो अब हर दिवार गिरा दें और
बंदिशों की हर बेडियां काटें
चलो अब हर अदना-ओ-आला में
सुख-दुख बराबर बांटें

अब प्यास को चुनने दें प्याला हम
और रिंद को मैकदा चुनने दें,
अब ज़ुबां को चुनने दें तकल्लुम हम
और होठों को तबस्सुम चुनने दें
अब आंखों को चुनने दें मंज़र हम
और ज़िस्म को कबा चुनने दें,
अब रियाज़त को चुनने दें मसीहा हम
और ज़ुर्म को सज़ा चुनने दें;

चलो पाबंदियों के कैंचुल उतार
थोडा हल्के हो लें
और पुरकैफ़ हवाओं में
हम आज़ाद डोलें;

follyofawiseman के द्वारा

April 1, 2012

पावन जी प्रणाम, कुछ भी समझ मे नहीं आ रहा हैं….लिखूँ …..कि चुप रह जाऊँ….या फिर लिखता ही रहूँ…..जब से आपका कमेंट पढ़ा हूँ एक अजीब से उलझन मे उलझा हुआ हूँ मैं…….रात ही से आपको कई बार reply लिखने कि असफल कोशिश कर चुका हूँ…..हाथ काँप के रह जाते हैं….., गला रुंघ जाता हैं…. आँखे नम हो जाती है….., पर शब्द नहीं उचरते हैं…….! अगर आप सामने होते तो अपने होने के ढंग से अपनी भावों को अभिव्यक्त कर देता……….पर शब्दों मे कैसे समेटूँ ख़ुद को………..!
आपको पढ़ के ऐसा लग रहा है जैसे किसी ने मुझमे मुझीं को मिला दिया हो….जैसे किसी ने शराब मे शराब को मिला दिया हो…..!
समझ नहीं पा रहा हूँ, कैसे ख़ुद से ख़ुद को अनुग्रहित करूँ……..कैसे ख़ुद से ख़ुद को आभार प्रगट करूँ……..!
पवन जी, आपके आने से मैं ऐसे फील कर रहा हूँ जैसे घने जंगल मे अपनी खोई आबरू को तलाशते सुग्रीव को राम का साथ मिल गया हो………
मैंने सुना हैं सूफियों को मस्तों से ख़ूब जमती है……..आपकी की सूफियाना आंजाद का ये मस्त मुरीद हो गया है……! तेरे वास्ते मेरा इश्क सूफियाना…..तेरे वास्ते……….मेरे ब्लॉग को पढ़ने और क्रांतिकारी प्रतिक्रिया वक्त करने के लिए मैं आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा कारता हूँ……!

rudra के द्वारा

March 30, 2012

अरे आप लोग लड़ रहे हैं और मज़े readers उठा रहे हैं. आपने जागरण ब्लॉग को रिअलिटी चैनल की तरह रिअलिटी ब्लॉग बना दिया. कही बिग बॉस की तरह इसको भी ढेर सारे पाठक न मिल जायें इस लिए लड़ना बंद करें और कोई आपके ब्लॉग या रचना को बुरा भला भी कहे थो उसको अन्यथा न लें. रश्मि जी से कहूँगा की आप भी कुछ शाहरुख़ खान से सीखें .. बेचारे की रा.one की कितनी बुरे की गयी, फजीहत की गयी लेकिन उसने कुछ नहीं बोला. और संदीप जी आप भी आज तक न बनते हुए इतनी खीचनी न करें. की सचिन बेचारा शतक भी मारे थो सुरु हो गए की बंगलादेश के खिलाफ मारा अब संन्यास ले लो :

 

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