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एक सेठ और एक मजदूर की बातचीत

Laptop wala Soofi
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Title:Ek seth aur ek mazdoor ki batcheet

 

 

बाबूजी पहचाने हमको,हम मज़दूर हैं

,,,न भीखारी नहीं….

पिचका गाल,करिया आंख और

इ दुर्बल मलीन शरीर

तो जलते जेठ और ठिठुरते पूस

की देन हैं बाबूजी

अब क्या करें भूख

मौसम देखकर थोडे हीं आती है बाबूजी ;

धूप,जाडा,गर्मी,बरसात झेलेंगे नहीं

तो टूटते छ्प्प्ड कैसे सिजवायेंगे बाबूजी ,

मुनिया के लिए कापीकिताब

और बडकू के लिये घिरनी वाला बाजा

कैसे लायेंगे बाबूजी ;

छोटकु तो बेचारा बडा सुद्धा था,

कुछ नहीं मागता था,

बीमार था तो दवाई पर दो धेला तक

खरचने नहीं दिया

और हालीहाली मर गया,

उ हमरी मज़बूरी खूब समझता था बाबूजी ;

उसके मुर्दा शरीर पे हज़ार रुपया का घी

जो हम उडेले थे,हमको पता है,

खूब अखरा होगा उसको बाबूजी ;

बाबूजी जब आप

मोटापा कम करने के लिए

सुबह सैर पे जाते हैं तो

हमहूं निकलते हैं

इ गड्ढा जैसा पेट भरने के लिये ;

पर बाबूजी ईधर कुछ दिन से

आप आ नहीं रहे थे

मंगना बताया कि अपना ढाइ साल का

बऊआ को उठाने में

आपके पीठ पे चोक आ गया था बाबूजी ….

अब पीठ का दर्द कैसा है बाबूजी ?

बाबूजी  सुने हैं कि आप

पन्नालाल पंसारी को चार बोरा

बासमती चावल का आर्डर दिये हैं.

हाथ जोड के एगो अरज़ है बाबूजी

उ बोरा अपने घर तक

हमको लाद के लाने दिजियेगा बाबूजी ,

जो मरज़ी मज़दूरी दे दिजियेगा बाबूजी…

मुनियां का कापी नहीं,

बडकू का बाजा नहीं ,न सही,

कम से कम दोगो सुक्खा रोटी का तो

ज़ुगाड हो जावेगा बाबूजी .

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