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बारिश से पहले

Laptop wala Soofi
Laptop wala Soofi
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ये यकायक क्या होने लगा है?

धरती की धमनियां

धडकने लगी हैं

और आसमां स्याह होने लगा है;

बिजली की आती-जाती चौंध,

जैसे आसमां के स्याह स्लेटों पे

खुदा सुनहरे हर्फ़ों से कुछ

लिखने-मिटाने लगा है….

सुग्गे का झुण्ड

बेतहाशा उडा जा रहा है

पूरब की ओर

और नीम के सघन शाखों में

एक कौव्वा दुबकने लगा है,

ये यकायक क्या होने लगा है?

 

झुक कर माटी की लब-बोसी

करने लगी है मकई

और खिडकी के पल्ले

एक-दूसरे से

गलबहियां करने लगे हैं

कोचवान बैलगाडी को

तेजी से हांकने लगा है और

’चीनिया बादाम’ की रट पे

झट से लगाम लगाता खोंमचे वाला

अपने तराजू-बटखरे

सम्हालने लगा है,

ये यकायक क्या होने लगा है?

 

हवा अपने बवंडरों में

आवारा कागज़ों और टूटे पत्तों को

दौडाने लगी है और

तार के पेड पे अटकी

एक पूरानी पतंग

अब मस्तूल सी फ़हराने लगी है;

बांस की फ़ुनगी पे टंगा

पिछली दिवाली का कण्डील

हिण्डोले सा डोलने लगा है,

क्या सावन अपने सरगर्मियों

का पिटारा खोलने लगा है,

ये यकायक क्या होने लगा है?

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